Wednesday, April 6, 2016

Sanskrit ‘Haiku’ Poems (from ‘Hasitasyaa Vayasyaa’ Kavya: Dr.Harekrishna Meher)

‘Haiku’ Poems (Extracts) : संस्कृत हाइकु- कविता  
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‘Hāsitāsyā Vayasyā’ (Anthology of Haiku-Sijo-Tanka Poems)
 Sanskrit Kāvya By : Dr. Harekrishna Meher 
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डॉहरेकृष्ण-मेहेर-प्रणीत संस्कृत काव्य
हासितास्या वयस्या
(हाइकु-सिजो-तान्का कविताओं की सङ्कलना)
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हासितास्या वयस्याकाव्य का नामकरण :
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यह अभिनव नामकरण अत्यन्त रोचक भाव से किया गया है 
और यह कवि-प्रतिभाका एक सुपरिचायक तत्त्व है 

हाइकु शब्द के प्रथम वर्ण हा,
सिजो शब्द के प्रथम वर्ण सि
एवं तान्का’ शब्द के प्रथम वर्ण ता’ 

इन तीनों को मिलाकर हासिता शब्द बनाया है कवि ने  
यह हासिता शब्द संक्षेप में इस तीनों छन्दों का सूचक है 
वयस्या शब्द का अर्थ है ‘सखी’ या ‘सहेली  
इसका तात्पर्य है कविता-रूपिणी सखी   
संस्कृत में आस्य शब्द का अर्थ है मुख 
हासितास्या शब्द के दो अर्थ किये जा सकते हैं श्लेष-माध्यम से 

 (प्रथम मुख्य अर्थ इसप्रकार है :
हासिता’ (हासिता:) आस्ये यस्याः साहासितास्या 
जिसके मुख में हासिता हैअर्थात् हाइकुसिजो और तान्का छन्दों का उच्चारण है
ऐसी ‘वयस्या’ सखी कविता 
इसप्रकार बहुब्रीहि समास में यह अर्थ अभिव्यक्त होता है 

(अन्य अर्थ है इसप्रकार :
हासितम् (अर्थात् ‘हास- युक्तम्) आस्यं (मुखंयस्याः साहासितास्या  
जिसका मुख हास से अर्थात् मुस्कान से युक्त है,
ऐसी ‘वयस्या’, सखी कविता   
कविता-सखी का मुख मुस्कानभरा है और उस मुख में 
हाइकु-सिजो-तान्का छन्दों का परिप्रकाश भी है  
इन दो प्रकार अर्थों को व्यक्त करता है 
इस काव्य का अभिनव नामकरण हासितास्या वयस्या   

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आधुनिक संस्कृत साहित्य में अनेक पारम्परिक एवं नव्य संस्कृत छन्दों के साथ 
कुछ विदेशी साहित्य के काव्य-छन्दों का प्रयोग भी प्रचलित हुआ है  
जापानी छन्द हैं हाइकु, तान्का एवं कोरिया-देशीय छन्द है सिजो  
ये काव्य-साहित्य के लघु और सार-गर्भक छन्द हैं  
इसलिये भारतीय साहित्य में भी इन छन्दों का प्रयोग होने लगा है            
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हाइकुछन्द में तीन अंश होते हैं : (-- वर्ण)  

(मिश्रित हाइकु भी बनाया जा सकता है : -- वर्ण अथवा -- वर्ण )

 ‘सिजो’ छन्द में छह अंश होते हैं (----- वर्ण)

तान्का’ छन्द में पाँच अंश होते हैं (----७ वर्ण)

हासितास्या वयस्या काव्य में आधुनिक संस्कृत-साहित्य में अन्तर्भुक्त
विदेशी छन्द हाइकु’, ‘सिजोऔर तान्काका प्रयोग किया गया है । 
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Some ‘Haiku’ Poems from ‘Hāsitāsyā Vayasyā’ Kāvya
हाइकु-कविता:  (हासितास्या वयस्या’- काव्यतः)  
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आयाति वात्या
गृध्राणां मधुमासः
अर्था उड्डीनाः (वात्या)
(वात्या आती है । गृध्र अर्थात् लोलुप-दृष्टिवालों का वसन्त ऋतु । पैसे और धन उड़ रह हैं ।)
तात्पर्य है कि वात्या के उपद्रव से पीड़ितों को प्रदत्त सहायता-अर्थराशि का शोषणकारी कर्मियों द्वारा
लुण्ठन प्रसङ्ग सङ्केतित है

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वामनी काया
विधुं लब्धुमुत्थिता
घर्माक्ता भ्रष्टा (वामनी)

(वामन-शरीरधारी व्यक्ति चन्द्र को पाने की इच्छा से ऊपर उठा स्वेद-जर्जर होकर गिर पड़ा )
इस कविता का तात्पर्य है कि अयोग्य व्यक्ति अप्राप्य उच्च पद के
अभिलाषी होने से केवल विफलता आती है  

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तमिस्रो मार्गः
दिशा-भ्रष्टो मानवः
लक्ष्यमदृश्यम् (तामसी)
(अन्धकारभरा रास्ता मनुष्य उपयुक्त दिशा से विच्युत हो गया है लक्ष्य दिखाई देता नहीं )
इस कविता में अपसंस्कृति द्वारा प्रभावित विपथगामी एवं लक्ष्य से दूर
आधुनिक मनुष्य की अन्धकारित भविष्य दशा का सङ्केत है

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गतोऽन्धदेशं
दर्पण-विक्रयार्थम्, 
मोघः प्रयत्नः (दर्पणः)
(अन्धों की नगरी में गया, दर्पण-विक्रय हेतु । सारा प्रयास व्यर्थ हो गया )
तात्पर्य है कि अविवेकी शासक के राज्य में कुशासन हेतु उपयुक्त प्रतिभा का आदर नहीं होता

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लोलुप-पक्षः
दुर्भिक्षस्य वक्षसि
संलक्ष्य-लक्षः    (दुर्भिक्षम्)
(लुब्ध शोषक लोगों का पक्ष विस्तारित है दुर्भिक्ष के उर पर लक्ष राशि का उद्देश्य है )
आशय है कि किसी राज्य में दुर्भिक्ष होने पर पीड़ित लोगों की दुर्दशा दूर करने हेतु 
वदान्य लोगों से सहायता-राशि आती है परन्तु शोषण करनेवाले धूर्त्त लोग उसमें
लाख कमाने की कामना रखते हैं

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दमितोऽप्यधः
उद्भिद्य प्रकाशते
प्रतिभा-वह्निः (स्फुलिङ्गः)   
(नीचे दमित होने पर भी प्रतिभा-रूपक अग्नि ऊपर भेदकर प्रकाशित होता है )
 इसका तात्पर्य है कि प्रतिभा का दमन नहीं किया जा सकता )   
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सन्त्रासवादः
मोघास्त्रं मारणाङ्कं
मानवतायाः (त्रासदी)
(आतङ्कवाद मानवता का हनन करनेवाला सफल अस्त्र नहीं है )
तात्पर्य है कि आतङ्कवाद कुछ मानवों के निधन करने का सङ्केत वहन करता है,
परन्तु मानवता का विनाश नहीं कर सकता
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Haiku-Sijo-Tanka Poems Anthology : 
Link: 
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कवेः हरेकृष्ण-मेहेरस्य संस्कृत-रचनासु हाइकु-सिजो-तान्का-कविता:
Kaveh Harekrishna-Meherasya Sanskrita-Rachanaasu Haiku-Sijo-Tanka-Kavitaah :
Research Article By:  Sasmita Sahu : Link:
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Published in Prachi Prajna  (Sanskrit E-Journal), Issue-6 / June-2018.
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